ग्रामीण परिवेश को नजदीक से देखने वालों ने गांवों में मिट्टी के चूल्हों पर महिलाओं को भोजन तैयार करते देखा
होगा। उस चूल्हे में ईंधन के रूप में इस्तेमाल होने वाले उपले जिस गोबर से बनते हैं, वही गोबर शहरों में वेस्ट में
जाता रहा है। शहरों में गौशाला या डेयरी के आसपास तो नाले-नालियां जाम होने की समस्याएं तक उत्पन्न हो जाती हैं। मगर
आपको जानकर हैरानी होगी कि उत्तर प्रदेश के लोनी इलाके में कुछ महिलाएं गोबर के महज निस्तारण ही नहीं, बल्कि उससे आय
के साधन जुटाने के विकल्प भी खोजने में सफल रही हैं। यहां कृष्णा विहार कॉलोनी की स्थानीय महिलाओं द्वारा गाय के
गोबर का इस्तेमाल कर अगरबत्ती और लोबान कप का निर्माण किया जा रहा है। इस अनोखे प्रयास की नींव रखने वाली भी लोनी
नगर पालिका परिषद की एक महिला अधिकारी हैं।
कुछ महिलाओं ने किया शुरू, अब बढ़ रही संख्या
पिछले साल स्वच्छ सर्वेक्षण में जब गाजियाबाद ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को दस लाख से
ज्यादा आबादी वाले शहरों में पीछे छोड़कर देश में 12वां और प्रदेश में पहला स्थान प्राप्त किया था, तब गाजियाबाद जिले
के ही अंतर्गत आने वाली लोनी नगर पालिका परिषद ने भी स्वच्छता की दिशा में कई नए प्रयास किए। इसी दौरान क्षेत्र में
महिला एडीएम ऋतु सुहास, लोनी क्षेत्र के इंचार्ज के रूप में अतिरिक्त जिम्मेदारियां संभाल रही थीं। उन्होंने जब कुछ
8-10 महिलाओं को गाय के गोबर से अगरबत्ती और लोबान कप बनाते देखा, तो ‘वेस्ट टू वेल्थ’ की दिशा में एक बेहतरीन हल
सुझाते हुए गौशाला से गोबर उपलब्ध कराने का प्रस्ताव दिया। अगरबत्ती उत्पादकों के साथ इस साझेदारी के बाद यहां न सिर्फ
उत्पादकों का कारोबार बेहतर हुआ है, बल्कि गर्मियों में जब अगरबत्तियों का निर्माण कार्य सर्वाधिक होता है, तब 40-50
तक महिलाओं को रोजगार मिल जाता है। साथ ही लोनी नगर पालिका परिषद को भी 25 प्रतिशत तक उत्पादों की बिक्री के जरिए
राजस्व प्राप्त हो रहा है।
अगरबत्तियों के निर्माण में ऐसे हो रहा गाय के गोबर का उपयोग
निर्माताओं और लोनी नगर पालिका की इस संयुक्त पहल को आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के स्वच्छ भारत मिशन-शहरी के तहत
चलाए जा रहे ‘स्वच्छ टेक्नोलॉजी चैलेंज’ के दौरान मंच मिला, जिनके प्रयोग को जमकर सराहना भी मिली। इस प्रक्रिया में
दीये के रूप में बनने वाले ‘लोबान कप’ और धूपबत्ती की तरह दिखने वाली ‘कोन शेप की अगरबत्तियों’ की निर्माण सामग्री
में पहले सामान्य अगरबत्तियों की तरह निर्माण में लकड़ियों का बुरादा, पिसा हुआ कोयला, सुगंधित जड़ी बूटियां, नीम की
सूखी पत्तियां और सूखे फूल का पाउडर उपयोग में लाया जाता था। ज्वलनशील बनाने के लिए बहुत कम मात्रा में चारकोल,
गंधक, पोटेशियम का इस्तेमाल होता था। अंत में इन अगरबत्तियों में सेंट का स्प्रे, गुग्गल और लोबान पाउडर की फिलिंग
होती थी। वहीं अब गाय के गोबर को मिलाकर बनाए जा रहे उत्पाद में 30 से 35 प्रतिशत गोबर का सूखा पाउडर मिलाया जा रहा
है, इनमें लकड़ी के बुरादे की मात्रा थोड़ी कम कर दी जाती है।
भारतीय बाजार में बढ़ रही मांग, मिल रही अच्छी कीमत
लोबान कप को इस तरह तैयार किया गया है, जिसमें जड़ी-बूटियों के माध्यम से वातावरण शुद्ध करने के लिए बनाया गया है।
यही कारण है कि इसकी मांग कोरोना काल के दौरान काफी बढ़ी। लोकल बाजार में यह लोबान कप 60 से 90 रुपये तक साइज के
हिसाब से 12 पीस एक पैकेट में बेचे जा रहे हैं। वहीं कोन अगरबत्ती के पैकेट 100 से 120 रुपये तक बेचे जा रहे हैं। एक
रचनात्मक उत्पाद है, जिसमें कोन शेप वाली अगरबत्ती को एक छेद के साथ तैयार किया जा रहा है, जो उसी के अनुरूप बनाई जा
रहीं मूर्तियों में लगाकर बेचा जा रहा है। यह एक पैकेट एक मूर्ति के साथ 150 रुपये तक बाजार में मिलता है। जब कोन
अगरबत्ती को जलाकर मूर्ति के साथ लगाई जाती है, तो उसमें नीचे की ओर निकलता धुआं बहुत सुंदर दिखता है। गोबर के बदले
में 25 प्रतिशत माल नगर पालिका को दिया जाता है, उसे परिषद के कार्यालय परिसर में स्टॉल लगाकर बेचा जा रहा है।
देशभर में हो रहा सप्लाई, कोरोना काल में विदेश तक पहुंचा
कृष्णा विहार में अगरबत्तियों का निर्माण करा रहे जय प्रकाश प्रजापति ने बताया कि शुरुआत
उत्तर प्रदेश के लोनी शहर से हुई, मगर अब यह उत्पाद देशभर के विभिन्न राज्यों और खास तौर पर धार्मिक स्थलों से मिलने
वाले ऑर्डर्स पर सप्लाई हो रहा है। देश में दिल्ली, मुंबई, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, हैदराबाद समेत अन्य कई
राज्यों में उत्पाद जा रहा है, वहीं कोरोना काल में कुछ बड़े ब्रांड्स के लिए भी तैयार कराया गया, जो मॉरिशस और साउथ
अफ्रीका में अब तक मंगाया जा रहा है।
भविष्य में गाय के गोबर से लकड़ी और गमले बनाने की योजना
यह निर्माण कार्य स्वच्छ भारत मिशन-शहरी के ‘जीरो वेस्ट विजन’ की दिशा में अप्रत्यक्ष रूप से योगदान दे रहा है।
अगरबत्ती निर्माता अंकित प्रजापति बताते हैं कि गौशाला के गोबर को ज्यादा से ज्यादा खपाकर कमाई का जरिया बनाने के
लिए अब नगर पालिका परिषद के अधिकारी और अगरबत्ती उत्पादक मिलकर गोबर से ज्वलनशील लकड़ी बनाने की तैयारी कर रहे हैं।
इस लकड़ी को भविष्य में श्मशान घाटों, हवन आदि में सामान्य लकड़ियों की जगह इस्तेमाल करने की योजना है, जो पेड़
बचाने की दिशा में भी बड़ा कदम साबित हो सकती हैं। इतना ही नहीं, एक योजना गोबर से गमले बनाने की भी है, जो घरों में
तो इस्तेमाल होंगे ही और पौधे के साथ ही मिट्टी में दबाए जा सकेंगे और जमीन के अंदर गमले खुद खाद में तब्दील हो
जाएंगे। उत्पादों में गोबर का इस्तेमाल बढ़ेगा, तो यहां काम करने वाली महिलाओं की संख्या भी बढ़ेगी। बड़े स्तर पर
काम शुरू करने के लिए खुली धूप के लिए बड़ी जगह की जरूरत होगी, जिसके लिए सरकार की ओर से प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
प्रयास को मिल रहा प्रोत्साहन
“लोनी में गौशालाओं के गोबर के उपयोग से नेचर फ्रेंडली लोबान कप, प्लेट, अगरबत्तियां बनाई
जा रही हैं। उत्पादकों द्वारा ऐसे प्रयोगों के लिए स्वच्छ भारत मिशन-शहरी द्वारा प्रोत्साहन मिलना अन्य लोगों को भी
रोजगार के इस नए अवसर की ओर आकर्षित करेगा।”- नंदकिशोर गुर्जर, विधायक लोनी
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