• सौ फीसदी सीएंडडी वेस्ट को रीयूज और रीसाइकल कर दिल्ली शहर निभा रहा अग्रणी भूमिका
• देशभर में निकलने वाले कुल म्यूनिसिपल वेस्ट का लगभग 20 प्रतिशत है सीएंडडी वेस्ट
• शहरों से निकलने वाले हजारों टन मलबे को प्रतिदिन ईंटों, टाइल्स, पेवर ब्लॉक्स में बदलकर ‘वेस्ट टू वेल्थ’ में तब्दील कर रहे हैं 1000 से 2000 टीपीडी तक क्षमता वाले आधुनिक सीएंडडी वेस्ट प्लांट
नई दिल्ली। जब कहीं कोई नया निर्माण या पुनर्निर्माण कार्य कराया जाता है अथवा अवैध निर्माण ढहाए जाते हैं, तो उससे निकलने वाला मलबा कहां जाता है? आम तौर पर सोचा जाता हैं कि मलबा कचरे में चला जाता होगा या किसी निर्माणाधीन मकान/प्लॉट में भराव के लिए इस्तेमाल किया जाता है! वास्तव में देशभर के शहरों से प्रतिदिन करीब 30 हजार टन मलबा निकलता है। आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA) की ओर से स्वच्छ भारत मिशन शहरी के अंतर्गत कई ठोस कदम उठाए गए हैं। इसके तहत 400 ‘कंस्ट्रक्शन एंड डेमोलेशन (सीएंडडी) वेस्ट प्लांट्स’ पर 15 हजार टन मलबे का प्रतिदिन निस्तारण किया जा रहा है। इस तरह वर्तमान समय में निकलने वाले कुल सीएंडडी वेस्ट में से लगभग 50 प्रतिशत तक रीसाइकल करते हुए उससे पुन: उपयोग में लाने लायक उत्पाद बनाए जा रहे हैं। मलबे को ईंटों, टाइल्स, पेवर ब्लॉक्स आदि का आकार देते हुए ‘वेस्ट को वेल्थ’ में तब्दील किया जा रहा है। इस सीएंडडी वेस्ट की खास बात है कि इसमें तकरीबन 90 फीसदी तक पुनरुपयोग होने लायक अपशिष्ट निकलता है और दिल्ली शहर में निकलने वाले मलबे का लगभग सौ फीसदी रीयूज और रीसाइकल कर सीएंडडी वेस्ट प्लांट्स इस बात का जीवंत उदाहरण भी पेश कर रहे हैं।
आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा सीएंडडी अपशिष्ट के रीसाइकल किए हुए उत्पादन एवं उपयोग को रिकॉर्ड करने की आवश्यकता महसूस की गई, ताकि सीएंडडी अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 को आसानी से समझने और एसबीएम के तहत परिकल्पित इस अपशिष्ट सामग्री का 100% तक उपयोग लागू करने के लिए हितधारकों को मार्गदर्शन और सुविधा प्रदान की जा सके। परिपत्र के माध्यम से सब राज्यों को 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में सीएंडडी वेस्ट रीसाइक्लिंग सुविधाएं स्थापित करने के लिए कहा गया। सीएंडडी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 – अधिसूचना में म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट, प्लास्टिक के कचरे, बायोडिग्रेडेबल म्यूनिसिपल वेस्ट जैसे विभिन्न प्रमुख शहरी कचरे को संसाधित करने वाले अन्य नियमों के बाद निर्माण और विध्वंस (सीएंडडी) अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 का नियम लागू किया गया।
योजनाओं को संयुक्त रूप से लागू करने के लिए नैशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) के साथ जोड़कर आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय ने 131 नॉन एटेनमेंट सिटी (खराब प्रदूषण स्तर वाले शहर) और 5 लाख से अधिक आबादी वाले 21 शहरों के लिए दो कंपोनेंट शामिल किए। इसके तहत कुल 152 शहरों के लिए अतिरिक्त केंद्रीय सहायता को मंजूरी दी गई। इन शहरों के लिए सीएंडडी वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट्स और मैकेनिकल स्वीपरों के लिए, 99 यूएलबी के लिए एक्शन प्लान को मंजूरी दी गई। विभिन्न शहरों में 427 मैकेनिकल रोड स्वीपर की खरीदारी के लिए कार्य योजना को मंजूरी दी गई। 116 यूएलबी में 7000 टीपीडी की क्षमता वाली सीएंडडी वेस्ट प्रोसेसिंग सुविधा स्थापित करने की कार्य योजना को मंजूरी दी गई। इसके साथ ही 103 यूएलबी के लिए 518 टीपीडी की क्षमता वाले मैकेनिकल स्वीपर की खरीद को मंजूरी दी गई।
आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 के अंतर्गत सभी राज्यों द्वारा सीएंडडी वेस्ट प्लांट्स में इस मलबे से दोबारा इस्तेमाल करने योग्य उत्पाद बनाए जा रहे हैं, ताकि कहीं खुले में मलबे के ढेर ना लगें और पर्यावरण भी साफ-सुथरा रहे। यह मलबा ‘कलेक्शन वाहन’ के जरिए ‘कलेक्शन सेंटर्स एवं प्रोसेसिंग प्लांट्स’ पर लाया जाता है। मलबे के लिए कई शहरी स्थानीय निकायों ने टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर्स भी जारी किए हुए हैं, जिसकी मदद से मलबा उठवाने या मंगवाने की सुविधाएं तय शुल्क चुकाकर ली जा सकती हैं।
मलबे को छंटाई के दौरान बारीक मिट्टी, मिक्स कंक्रीट और पत्थरों के रूप में पांच से छह श्रेणियों में अलग किया जाता है और प्लांट्स पर ज्यादातर काम स्वचालित मशीनों द्वारा किया जाता है, जो काम हाथों से होता है, वहां कर्मचारियों को विशेष सुरक्षा उपकरण दिए जाते हैं। मलबे से अलग किए गए पदार्थों को सीमेंट में मिलाकर अलग-अलग आकार वाली विभिन्न रंगों की पेवर मिलानो टाइल्स, जिग-जैग टाइल्स और डंबल टाइल्स आवश्यकतानुसार बनाई जा रही हैं। इन्हें नए निर्माण कार्यों में फुटपाथ, लॉन, परिसर, दीवार आदि में इस्तेमाल किया जा रहा है। वहीं प्लांट्स पर सीमेंटेड कंक्रीट ब्लॉक्स और कर्ब स्टोन्स तैयार कर बिक्री के लिए भेजे जा रहे हैं, जिनका भवन निर्माण में भी इस्तेमाल हो रहा है। मिसाल के तौर पर दिल्ली के शास्त्री पार्क स्थित प्लांट पर पूरा कार्यालय ही सीएंडडी वेस्ट का उपयोग कर निर्मित कराया गया है। गौरतलब है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की नई बिल्डिंग के निर्माण के लिए भी सीएंडडी वेस्ट से बने उत्पाद भेजे गए हैं।
प्रतिदिन आने वाला मलबा संशोधित करने के लिए विभिन्न राज्यों में प्लांट्स की संख्या बढ़ाई जा रही है, जिसके अंतर्गत कई नए प्लांट निर्माणाधीन हैं, जिनकी डिजाइन्ड कैपेसिटी भी काफी बेहतर है। दिल्ली की बात करें तो बुराड़ी में 2000 टीपीडी अपशिष्ट प्रसंस्करण क्षमता वाला प्लांट स्थापित किया गया है। इसके अलावा दिल्ली के ही शास्त्री पार्क और रानीखेड़ा में 1000 टीपीडी क्षमता के प्लांट लगे हैं, वहीं मुंडका में 150 टीपीडी का छोटा प्लांट भी है। एनसीआर क्षेत्र में हरियाणा के गुरुग्राम स्थित बसई में 1000 टीपीडी और नोएडा में 800 टीपीडी का प्लांट स्थापित किया गया है, जिसमें फिलहाल 400 टीपीडी सीएंडडी वेस्ट ही आ रहा है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में भी 200 टीपीडी का प्लांट लगाया है। हाल ही में कोलकाता में भी सीएंडडी वेस्ट प्लांट स्थापित किया गया है, जिसकी क्षमता 1600 टन प्रतिदिन की है और यह ‘अत्याधुनिक तकनीक’ पर आधारित है। इसी तरह कई राज्यों में छोटे-बड़े और अलग-अलग क्षमता वाले सीएंडडी प्लांट्स स्थापित किए गए हैं, जो मलबे को नया आकार देकर स्वच्छता के अनोखे सफर की नई परिभाषा लिख रहे हैं।
इन प्लांट्स पर प्रोसेसिंग के जरिए 3R अवधारणा का जीवंत उदाहरण पेश किया जा रहा है। मलबे से बचने वाला बाकी 10 प्रतिशत अपशिष्ट में प्लास्टिक व पेपर वेस्ट को ‘वेस्ट टू एनर्जी’ प्लांट और मैटल वेस्ट को ‘वेस्ट टू वंडर’ प्रोजेक्ट में फिर से इस्तेमाल के लिए भेज दिया जाता है। इसके बाद बहुत कम मात्रा में सिल्ट के रूप में बचने वाले वेस्ट को लो लाइन एरिया में डालकर सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस तरह लगभग सौ फीसदी सीएंडडी वेस्ट को रिड्यूस कर खपाने में तो सफलता मिल ही रही है, साथ ही इसके अंतर्गत 90 प्रतिशत मलबा रीसाइकल और रीयूज करते हुए सर्कुलर इकॉनमी को मजबूती देने का काम किया जा रहा है।
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