Swachh Bharat Mission Urban 2.0

शहरी स्वच्छता को सशक्त बनाती ‘नारी शक्ति’

- दिल्ली के ‘गरिमा गृह’ में कौशल निखारती महिलाएं हों या कचरे से खाद बनातीं शिलॉन्ग की ‘मैरी मेडेन्स ऑफ मार्टेन’
- मध्य प्रदेश में 60 महिलाओं के ‘स्वच्छता किट्टी समूह’ से ओडिशा में 6 लाख ‘मिशन शक्ति समूह’ तक शानदार सफर

साल 2024 में जब 26 जनवरी को भारत ने 75वां गणतंत्र दिवस मनाया, तब कर्तव्य पथ पर देश की नारी शक्ति का अद्भुत प्रदर्शन देखने को मिला, क्योंकि इस बार की थीम भी ‘नारी शक्ति’ थी। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ का हालिया संस्करण नारी शक्ति को समर्पित किया और कहा, “आज देश में कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिसमें देश की नारी-शक्ति पीछे रह गई हो। अन्य क्षेत्र जहां महिलाओं ने अपनी नेतृत्व क्षमता का बेहतरीन प्रदर्शन किया है, वो हैं – प्राकृतिक खेती, जल संरक्षण और स्वच्छता।” आज हमारा देश ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के अंतर्गत हर दिन नई ऊंचाइयों को छू रहा है और मिशन को ‘जन आंदोलन’ बनाने में इस नारी शक्ति का विशेष योगदान रहा है। फिर भले ही मध्य प्रदेश में 60 महिलाओं द्वारा शुरू किया गया ‘स्वच्छता किट्टी समूह’ हो या फिर ओडिशा में 6 लाख ‘मिशन शक्ति समूहों’ से जुड़ी 70 लाख महिला सदस्यों की भागीदारी। ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ के उपलक्ष्य में आइए इस बार आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 के अंतर्गत शहरों में स्वच्छता का परचम लहराने वाली ऐसी ही कुछ महिला लीडर्स की स्वच्छता यात्रा के साक्षी बनें।

img
img

ओडिशा में ‘मिशन शक्ति’ स्वयं सहायता समूह और आवास एवं शहरी विकास विभाग के बीच साझेदारी के तहत महिलाओं और अन्य कमजोर समूहों को सशक्त बनाया जा रहा है। दो दशकों में ओडिशा ने लगभग 6,00,000 मिशन शक्ति स्वयं सहायता समूहों का गठन किया, जिससे करीब 70 लाख महिला सदस्य जुड़ चुकी हैं। वर्तमान में मिशन शक्ति की सदस्य जल साथी, आहार केंद्र प्रबंधन, स्वच्छ साथी और स्वच्छ पर्यवेक्षकों के रूप में काम कर रही हैं। 2000 से अधिक समूह मानदंडों के अनुसार ठोस अपशिष्ट पृथक्करण, बैटरी रिक्शा से संग्रह एवं परिवहन, अपशिष्ट के उपचार, पुन: उपयोग और निस्तारण कार्य में शामिल हैं। ये समूह ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।

मध्य प्रदेश के भोपाल में महिलाएं शहर की स्वच्छता और वेस्ट सेग्रीगेशन में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। एक पहल के अंतर्गत 250 महिलाओं के ब्रांड एंबेसडर समूह और भोपाल नगर निगम के बीच आपसी सहयोग शामिल किए गए हैं। इन समूहों व निगम के संयुक्त प्रयास यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी कार्यक्रम ‘जीरो वेस्ट’ और बेहतर ‘वेस्ट मैनेजमेंट’ के तहत आयोजित किए जाएं। समूह के सदस्य सिंगल-यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल खत्म करने के लिए 25 वार्डों में ‘बर्तन बैंक’ चला रहे हैं। 60 महिलाओं का एक ‘स्वच्छता किट्टी समूह’ बनाया गया है, जो शहर की स्वच्छता में सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है। समूह के सभी सदस्य 100 रुपये मासिक योगदान देकर स्वच्छता व्यवस्थाएं बेहतर बनाने के उद्देश्य से सामुदायिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी निभाते हैं।

img
img

दिल्ली नगर निगम के साथ मिलकर पीवीआर नेस्ट ने झुग्गियों में महिलाओं, बच्चों और वंचित वर्गों को समर्पित ‘गरिमा गृह’ शुरू किया। यह महज एक शौचालय सुविधा नहीं है बल्कि यहां महिलाओं के लिए तमाम तरह की विशेष सुविधाएं हैं। यहां सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीनों के साथ सैनिटरी वेस्ट खत्म करने के लिए इंसिनरेटर्स लगे हुए हैं। महिलाओं के लिए यहां चेंजिंग रूम, फीडिंग रूम और बाथरूम भी हैं। इतना ही नहीं, यहां पूरी तरह महिलाओं द्वारा संचालित कॉमन सर्विस सेंटर, ‘जन सेवा केंद्र’ भी है, जो आमजनों को डिजिटल सेवाएं प्रदान कर रहा है। साथ ही ‘वुमन एम्पॉवरमेंट सेंटर’ है, जहां प्रशिक्षित महिलाएं सभी नई सदस्यों को आजीविका अर्जित करने के लिए जरूरी कौशल सिखा रही हैं। एक कवर्ड स्पेस भी है, जहां महिलाएं आराम कर सकती हैं।

मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग में इयनेहस्केम नामक महिला स्वयं सहायता समूह ‘वेस्ट टु कंपोस्ट’ के तहत काम कर रहा है। यहां शहर की कॉलोनियों से निकलने वाले गीले कचरे को एक जगह एकत्रित करके खाद बनाने के अनुकरणीय मॉडल पर काम हो रहा है। ये महिलाएं खुशी-खुशी खाद बनाने का काम कर रही हैं और एकता और सहयोग की भावना के चलते उन्हें ‘मैरी मेडेन्स ऑफ मार्टेन’ के रूप में जाना जाता है। शिलॉन्ग नगर बोर्ड ने महिलाओं के पुनर्वास के लिए एक योजना पर काम किया, जिसके तहत कचरा बीनने वाली महिलाओं को आजीविका बढ़ाने के उद्देश्य से प्रशिक्षण दिया गया। उन्होंने अपशिष्ट का उपयोग कर मामूली आय से मासिक बचत शुरू की। साथ ही खाद बनाने की सरल स्वदेशी तकनीकों से बायोडिग्रेडेबल कचरे को खाद में परिवर्तित किया, जो पौधों के लिए बहुत असरदार मानी जाती है। निरंतर प्रोत्साहन से ये महिलाएं हरित अर्थव्यवस्था और हरित-नौकरियों की चैंपियन बन गई हैं।

img
img

‘बैंणी सेना’ का अर्थ है ‘बहनों की सेना’, यह पहल उत्तराखंड में ठोस अपशिष्ट कार्यों के पर्यवेक्षण के लिए राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के तहत की गई है, जिसके अंतर्गत एक सशक्त महिला स्वयं सहायता समूह का गठन किया गया है। सेना का नाम विशेष पहचान, टीम वर्क और अनुसाशन के तहत स्वच्छता की निगरानी संबंधी काम को देखते हुए दिया गया है। एक वार्ड में एक समूह काम कर रहा है और 57 समूहों में कुल 570 सदस्य हैं, जो कि हर महीने अपने कार्यक्षेत्र का निरीक्षण करती हैं। निगम और नागरिकों के बीच संचार और उनसे जुड़कर स्वच्छता सेवाओं की निगरानी, जागरूकता कार्यक्रम चलाना और शिकायतें मिलने पर गुणवत्ता में सुधार कराना बैंणी सेना का काम है। इसके अलावा उपयोगकर्ता शुल्क की वसूली समेत वॉट्सऐप के माध्यम से निगम प्रशासन और पर्यावरण मित्रों के बीच समन्वय स्थापित करना भी बैंणी सेना की जिम्मेदारी है, जिसे वे बखूबी निभा रही हैं। स्वच्छता की दिशा में महिला समूहों द्वारा किए जा रहे ये सभी प्रयास अनुकरणीय हैं, जो कि स्वच्छ भारत मिशन को नए आयाम पर पहुंचाने वाली वास्तविक नारी शक्ति को दर्शाते हैं।

नियमित अपडेट्स के लिए कृपया स्वच्छ भारत मिशन की ऑफीशियल वेबसाइट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को फॉलो करें:

वेबसाइट : https://sbmurban.org/

फेसबुक : Swachh Bharat Mission - Urban  | ट्विटर: @SwachhBharatGov

इंस्टाग्राम: sbm_urban | यूट्यूब: Swachh Bharat Urban | लिंक्डइन: swachh-bharat-urban