गांधीजी के विचारों को आत्मसात करें, तो हमारे घरों में होने वाली ईश्वर की दैनिक आराधना हो या फिर देश के कई राज्यों में हर साल लाखों श्रद्धालुओं द्वारा सावन के महीने में निकाली जाने वाली कांवड़ यात्रा, हर जगह स्वच्छता का विशेष महत्व होता है। इस साल कांवड़ यात्रा 22 जुलाई 2024 से शुरू हुई और 2 अगस्त को समापन हुआ। कांवड़ यात्रा के दौरान सभी संबंधित राज्यों में बेहतर स्वच्छता व्यवस्थाएं मुहैया कराने की जिम्मेदारी शहरी स्थानीय निकायों द्वारा बखूबी निभाई गई। इस साल कांवड़ यात्रा पर भी आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA) के स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBM-U) के अंतर्गत चल रहे ‘सफाई अपनाओ, बीमारी भगाओ’ (SABB) अभियान का असर दिखा।
सावन के महीने में कांवड़ यात्रा आयोजन की सर्वाधिक जिम्मेदारी उत्तराखंड पर होती है, खास तौर पर हरिद्वार में जहां प्रसिद्ध 'गंगा घाट मेला' लगता है। हरिद्वार में श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या को देखते हुए उत्तराखंड के शहरी स्थानीय निकाय साफ-सफाई के खास इंतजाम करते हैं। 'कांवड़ मेला-2024' के लिए हरिद्वार नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग ने सात जोन में 1 हजार सफाईमित्र तैनात किए गए। इसके अलावा, 110 कचरा संग्रहण वाहन, 8 स्थानों पर 1 हजार सीटों वाले 100 स्मार्ट मोबाइल शौचालयों का प्रावधान और प्लास्टिक का इस्तेमाल को रोकने के लिए निगरानी जैसे उपाय किए गए। सफाई सुनिश्चित करने के लिए कर्मचारियों ने 47 स्थानों पर तीन शिफ्ट में चौबीसों घंटे काम किया। ‘सफाई अपनाओ, बीमारी भगाओ’ अभियान के तहत हर जगह कांवड़ियों को संक्रामक रोगों से बचाने के लिए टैंकरों और 60 अतिरिक्त स्प्रे मशीनें खरीदकर निरंतर कीटनाशक का छिड़काव भी किया गया।
उत्तर प्रदेश में 17 शहरी स्थानीय निकायों ने स्वच्छता के विशेष इंतजाम किए हैं, इनमें मथुरा-वृंदावन, अलीगढ़, अयोध्या, बरेली, शाहजहांपुर, गोरखपुर, झांसी, कानपुर, लखनऊ, मेरठ, मुरादाबाद, प्रयागराज, सराहनपुर, वाराणसी और फिरोजाबाद शामिल हैं। यात्रा मार्ग पर 8296 कर्मचारी, 266 मोबाइल शौचालय और 285 जगह कीटनाशक का छिड़काव किया गया। उत्तर प्रदेश सरकार ने अन्य निकायों की मदद से अतिरिक्त 27191 कर्मचारी और 768 मोबाइल शौचालय और 2628 स्थानों पर कीटनाशक के छिड़काव की व्यवस्था की। आगरा में नगर निगम ने जीरो वेस्ट ‘सावन परिक्रमा’ वाहन की मदद से आयोजन को जीरो वेस्ट इवेंट बनाने का लक्ष्य रखा, जिसके लिए उन्हें विशिष्ट प्रमाण पत्र भी मिला। यहां प्लास्टिक पर प्रतिबंध रखा गया, कपड़े के थैले व फूल बांटे गए, ट्विन डस्टबिन की व्यवस्था और सभी घाटों की सफाई की गई। गाजियाबाद में कांवड़ियों पर पुष्पवर्षा की गई, जिसके बाद स्वास्थ्य विभाग ने फूलों को इकट्ठा कर फ्लावर कंपोस्टिंग प्लांट पहुंचाया और जैविक खाद बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया।
बिहार के सुल्तानगंज से झारखंड के देवघर के बीच निकाली जाने वाली कांवड़ यात्रा भी बहुत प्रसिद्ध है, हालांकि यहां स्वच्छता व्यवस्था समेत 90 प्रतिशत जिम्मेदारी शहरी स्थानीय निकाय ही संभालते हैं। देवघर श्रावणी मेले में पूरे महीने 108 किलोमीटर लंबे यात्रा मार्ग पर 50 लाख के करीब श्रद्धालु कांवड़ यात्रा में शामिल होते हैं। इस बार 750 कर्मचारी और सफाईमित्र कचरा एकत्र करने, मार्ग पर सफाई और मोबाइल शौचालयों की लगभग 400 सीटों की स्वच्छता के लिए तैनात किए गए, जिन्होंने तीन शिफ्टों में काम किया। मेला क्षेत्र में ट्विन बिन और कंटेनर्स की व्यवस्था के साथ-साथ कीटनाशक का छिड़काव भी किया गया।
राजधानी दिल्ली के एक बड़े हिस्से से कांवड़ यात्रा मार्ग होकर गुजरता है, जिसके लिए सैकड़ों कांवड़ पंडाल और शिविर लगाए जाते हैं। कावंड़ियों के लिए साफ-सफाई और ट्विन बिन से लेकर स्वच्छ शौचालयों तक, हर तरह की व्यवस्था की जाती है। कई पंडालों में साफ-सफाई संबंधी दिशा-निर्देश विशेष रूप से दिए गए थे। कांवड़ियों के ठहरने के दौरान शौचालयों की नियिमत सफाई सुनिश्चित की गई। मध्य प्रदेश के जबलपुर में शहरी स्थानीय निकायों ने शानदार काम करके दिखाया, जहां कांवड़ यात्रा के गुजरते ही 35 किलोमीटर लंबे यात्रा मार्ग को आधे घंटे के भीतर साफ कर दिया गया। नगर निगम द्वारा गौरीघाट के सिद्धघाट से कैलाश धाम तक हर जगह सफाईमित्रों की टीम तैनात थी, जहां पर तुरंत सफाई अभियान चलाने के लिए टीम ने पहले से ही योजना बना ली थी। जिन राज्यों में स्वच्छ कांवड़ यात्रा निकाली जाती है, उनमें खास तौर पर दिल्ली समेत उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड़, हरियाणा के अलावा कुछ श्रद्धालु पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, ओडिशा के आसपास से भी शामिल होते हैं।
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